बचपन में हम sci-fi फ़िल्में देखते थे जिनमें बड़ी बड़ी मशीने, कम्प्यूटर जिनसे रोबोट तैयार किए जाते थे और वही रोबोट मशीनों द्वारा ऑपरेट होते थे, तब यह सब देखकर आश्चर्य होता था कि किस तरह से यह तकनीक काम करती होगी कि मशीन द्वारा किसी रोबोट से अपनी मर्ज़ी के काम करवाए जाएँ फिर वो विनाश हो या विकास. फ़िल्मों में यह सब आज भी रोमांच देता है और बढ़ती तकनीक और कल्पना शक्ति ने इसे और समृद्ध ही किया है पर क्या यह सब असल में सम्भव है वो भी इंसानो पर…?? क्या यह तकनीक अब और आगे बढ़कर रोबोट के अलावा इंसानों को भी नियंत्रित कर सकती है..? शायद हाँ… पर इंसानों को नियंत्रित करने और रोबोट को नियंत्रित करने में सबसे आसान क्या होगा…? शायद इंसान ही क्योंकि वह बेहद आसानी से हर ऐक्शन का रीऐक्शन दे देता है जबकि रोबोट बिना कोडिंग प्रोग्रामिंग के एक स्टेप आगे नहीं जाएगा, लेकिन एक इंसान अपने मनोभाव और आभासी प्रभाव (वर्चूअल रीऐलिटी) को समझ नहीं पाता और ट्रैप में फँसता चला जाता है, और यह प्रभाव कब आदत बनकर हमारे मस्तिष्क और हमारे कलापों को अव्यवस्थित करना शुरू कर देता है हम जान भी नहीं पाते और कई बार अलग अलग समय/ परिस्थिति में हम अवसाद से ग्रसित होकर कई गलत क्रत्य में भी संलिप्त हो जाते हैं. इन्ही सारी बातों को कहते और बताते हुए, पिछले हफ़्ते नेटफलिक्स पर आयी है डॉक्युमेंटरी फ़िल्म “the social dilemma” जो विस्तृत रूप से ऐसी ही विसंगतियों पर स्पष्ट और तथ्यपरक ज़रूरी बात करती है,यह डॉक्युमेंटरी …
बात ‘the social dilemma’ की Read More »