बात ‘महारानी’ की (वेब- सीरीज़/ फ़र्स्ट सीज़न)

“अपवाद अगर लम्बे समय तक टिक जाए तो नियम बन जाता है।”
“Bihar is not a state but a state of mind.”
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सत्ता का स्वाद और राजनीति के समीकरण को बनाए रखने की जद्दोजहद को पूरी ईमानदारी से रखने और कल्पना को सजीव बनाने की भरसक कोशिश में बहुत हद तक सफल और असफल होती है “महारानी”। किरदारों के चयन में कुशलता बरती है और चुने हुए सभी अभिनेताओं ने बेहतरीन अभिनय किया है।

भीमा भारती से लेकर प्रेम कुमार तक, मिश्रा जी से लेकर परवेज़ आलम, गौरी शंकर और महामहिम गोवर्धन दास से नवीन कुमार तक व अन्य सभी अपने किरदार में सजीव हैं। सबको भरपूर द्रश्य और संवाद भी मिले हैं ताकि वे अपनी उपस्थिति और किरदार को बेहतरी से दर्ज करा सकें। लेकिन जब कलाकार के पास गिनती का एक द्रश्य हो और वह तब भी आपके ज़हन में रह जाए तो यह कमाल ही होता है।

इस सीरिज़ में विमला देवी का किरदार ऐसा ही है। जो कथा में जब आता है तो कथा की कई परतों को उलझा कर धीरे से सुलझने की ओर बढ़ा देता है आगे के घटनाक्रम को प्रभावित भी करता है और तब समझ आता है कि यह किरदार एक द्रश्य का होकर भी कितना महत्व का है। उम्मीद है अगले सीज़न में इस किरदार की और भी कई रहस्यमयी परतें खुलेंगी।

असल में ‘महारानी’ पूर्णरूपेण रानी भारती की कथा है, और बिहार के एक कालखंड से प्रभावित भी लगती है।

यह पूरी सीरीज ‘महारानी’, रानी भारती के नज़रिए से राजनीति के गहरे और अंधेरे कुँए में झांकने की कोशिश तो करती है पर वो सलीके से रौशनी दे ना सकी और सतही तौर पर ही राजनीति, जाति हिंसा, भेद भाव आदि पर बात करते हुए लौट आयी। जाति समीकरण की राजनीति उसकी उठापटक तो हम आए दिन अख़बारों और न्यूज़ चैनलों में देखते ही हैं कि कैसे सत्ता दल अपनी सरकार बनाए रखने के लिए बड़े से बड़े अपराधियों को भी संविधान का प्रहरी बना देता है।

यह सीरीज़, कल्पना की दृष्टि से बिहार की जो तस्वीर हमें दिखाती है वह कितनी सच्ची है झूठी इसपर बहस बेमानी होगी बजाय सिर्फ़ एक सच के कि बिहार की पहली महिला मुख्यमंत्री अनपढ़ थी, और यहाँ हमारी नायिका रानी भारती भी। रानी भारती को ये अवसर उनके पति के घायल होने पर मिलता है जबकि हक़ीक़त में यह अवसर बिहार के मुख्यमंत्री श्री लालू यादव जी स्वयं के जेल जाने की स्थिति में अपना उत्तराधिकारी और प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री अपनी पत्नी श्रीमती राबड़ी देवी जी को बना जाते हैं।

मेरी समझ में ऐसा सामंजस्य दर्शकों को स्क्रीन तक लाने और कथा की रोचकता के लिए ही होगा। बाद बाक़ी सीरीज़ देखी जा सकती है पर इससे बहुत अधिक संतुष्ट होने की ज़िम्मेदारी हम नहीं लेंगे।

हमें यह कई जगह टुकड़ों में बिखरी हुई लगी। कई सारी कड़ियाँ होने की वजह से कई किरदार साथ चलते चलते छूट कर फिर मिलते हैं। कहानी में नरसंहार के इतने ह्रदय विदारक द्रश्य के बाद भी कहानी में उसकी गंभीरता दिखती नहीं या कहें उसका असर नहीं होता जबकि होना चाहिए था।

 ‘महारानी’ सीरीज़ की कुछ घटनाएँ इतनी आसानी से घट जाती हैं कि उन घटनाओं और द्रश्यों का प्रभाव पड़ ही नहीं पाता। जैसे कुंवर को अरेस्ट करने वाला सीन, परवेज़ आलम की पूरी इंवेस्टिगेशन, मचान बाबा का प्रकरण, वीरेन्द्र की हत्या, शंकर का पूरा ट्रैक…

ये सब वो द्रश्य हैं जो और बेहतर, इंगेजिंग और असरदार होने थे पर हो नहीं पाए। इनके किरदारों को सतही ही रहने दिया। इस सीरीज़ की एक बड़ी ख़ामी इसमें विपक्ष का कमजोर होना भी है। कथानक में किसी भी नरसंहार के बाद ना तो जनता में रोष है ना ही पर्याप्त विपक्ष कुछ कहता है बस रानी भारती का फूट फूट कर रोना और डीजीपी को तेरहवी से पहले क़ातिलों को पकड़ने का आदेश; पर ये बात कहीं गुम जाती है पूरी सीरीज़ में। अब जो कहानी राज्य की चिंता में थी वह एकदम से पति के हत्यारे को पकड़ने और उसे सजा दिलाने पे केंद्रित हो जाती है। हालाँकि राज्य की चिंता भी सिरीज़ के अंत में पुनः लौटती है और रानी भारती असल जीवन से इतर होकर न्याय करती है।

कुल मिला, इस सीरीज़ में बिहार की कई बड़ी राजनीतिक घटनाओं का काल्पनिक रूपांतर हुआ है और उन्हें एक तार में पिरोकर सीरीज़ गढ़ी गयी है। अगला सीज़न बनाने के लिए पर्याप्त कड़ियाँ और रेशे हैं इस सीरीज़ के पास इसलिए इस सीज़न को देख डालिए और अगली का इंतज़ार करिए।

मुझे एंड क्रेडिट का संगीत बहुत बढ़िया लगा। एकदम डिफरेंट और फ़्रेश है।

कुछ संवाद बहुत अच्छे हैं, और देखते समय वे किरदार के प्रभाव को बढ़ाते भी हैं। ख़ासकर रानी भारती के किरदार और उनके संवाद पर अलग से मेहनत हुई दिखती है, क्योंकि महारानी तो वही हैं।