बात ‘पैरासाइट’ की

पैरासाइट एक ब्लैक कॉमेडी थ्रिलर है, जिसे निर्देशित किया है बोंग जून हो ने। यह एक दक्षिण कोरियाई फ़िल्म है और इस वर्ष के एकेडमी पुरस्कार में चार पुरस्कार जीते हैं जिसमें बेस्ट पिक्चर, बेस्ट डायरेक्टर, बेस्ट ऑरिजनल स्क्रीनप्ले और बेस्ट इंटरनेशनल फ़ीचर फ़िल्म शामिल है, और साथ ही यह पहली नॉन इंग्लिश लैंग्वेज फ़िल्म है जो इस श्रेणी में जीतने वाली पहली फ़िल्म होगी।

पैरासाइट ने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय फ़िल्मोत्सव में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है और साथ ही बहुत से अवार्ड भी जीते और सराहना भी, इस फ़िल्म को कांस फ़िल्म फ़ेस्टिवल में आठ मिनट का स्टैंडिंग ओवेशन भी मिला था।

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पैरासाइट, मूल रूप से तीन परिवार की कहानी है जिसमें एक पार्क फ़ैमिली है और एक किम फ़ैमिली, इसके अलावा एक परिवार और है जो फ़िल्म के मध्य में उजागर होता है जिसके बारे में हम विस्तृत बात नहीं करेंगे।

फ़िल्म में मुख्यतः २ परिवार की समानांतर कहानी चलती है जिसमें Park Dong-ik एक बेहद अमीर और अपर क्लास के हैं, जो एक बड़े से आलीशान बंगले में अपनी पत्नी, एक बेटा- बेटी के साथ रहते हैं और साथ में एक हेल्प भी जो सालों से घर की सारी देख-रेख करती आ रही है, जबकि दूसरा परिवार Kim Ki-taek का है जो कि बेहद ग़रीबी में जीने वाला लोअर क्लास है, जो एक छोटे से कमरे में पति-पत्नी, बेटे- बेटी के संग रहता है जो कि एक बेसमेंट में स्थित है और उसकी खिड़की सड़क की ओर है, और इस परिवार की आजीविका पिज़्ज़ा के बॉक्स बनाने की है, और वे पड़ोस के wifi को हैक करके यूज़ करते हैं, सड़क पर कीटनाशक धुंए को घर में आने देते हैं क्योंकि वह फ़्री में उन्हें मिल रहा है, मतलब कि उनके जीवन के संकट बहुतायत हैं पर फिर भी वे जीने की हर संभव कोशिश में लगे ।

इसी पहले सीन के पहले फ़्रेम और आख़िरी सीन के आख़िरी फ़्रेम की बात करें तो ये तक़रीबन एक ही है, पर इस पहले और आख़िरी फ़्रेम के एक होने के बीच में इतनी अधिक घटनायें होती है जो हमें हँसाती है, रुलाती हैं और कुछ मौक़ों पर डरा के आश्चर्य में भी डालती हैं।

फ़िल्म अपने पहले फ़्रेम से अपने उद्देश्य में किम परिवार की ज़रूरत, उनकी व्यथा बता जाती है और किस क़दर उन्हें पैसों और अच्छे काम की ज़रूरत है वह भी, फ़िल्म के शुरुआती कुछ द्रश्यों में ही Kim Ki-taek के बेटे Ki-woo का एक दोस्त उन्हें एक स्टोन गिफ़्ट में देता है और कहता है कि ये घर में रखने से बरकत आएगी और सभी परेशानियाँ दूर होगी, हालाँकि उस समय किम के परिवार को उस स्टोन को देखकर ज़रा भी ख़ुशी नहीं होती और वे आपस में कहते भी हैं कि इससे बेहतर होता कि वो कुछ खाने का या और कुछ ले आते पर फिर भी वे उसे स्वीकारते हुए धन्यवाद देते हैं, इसी सीन के एकदम बाद Ki-woo का दोस्त उसे पार्क फ़ैमिली के बारे में बताता है जहाँ वो ख़ुद Park Dong-ik की बेटी Park Da-hye को इंग्लिश ट्यूशन देता था और वो ख़ुद Park Da-hye को पसंद करता है इसलिए वह नहीं चाहता कि उस घर में कोई और जाए तो वह अपने दोस्त Ki-woo को वहाँ जाने के लिए मनाता है और उसे अपनी पढ़ाई के फ़र्ज़ी सर्टिफ़िकेट बनाके ले जाने को कहता है जिससे उसे नौकरी मिलने में दिक्कत ना आए और ठीक इसके बाद Ki-woo, अपनी बहन Kim Ki-jeong के साथ मिलकर फ़ोटोशॉप पर सर्टिफ़िकेट बनाके घर से निकलता है तो उसके परिवार के सभी उसपर प्राउड फ़ील करते हुए उसे विदा करते हैं जैसे वो कोई महान काम करके काम ढूँढने जा रहा हो। इस पूरे प्रकरण में आपको मज़ा आएगा बातों में हरकतों से।

और इसी सीन के साथ फ़िल्म हमें Kim Ki-taek के पूरे परिवार से अवगत करा देती है और उनकी ज़रूरतों से भी कि वे किन स्थितियों परिस्थितियों में भी साथ रहकर ख़ुश हैं, पर फिर भी उन्हें चाह है कि वे भी एक बड़े से घर में अपने मन का खाना खा सके और जी सकें, जो कि हर ग़रीब परिवार की ख्वाहिशों की लिस्ट में पहले नम्बर पर होता है।

ख़ैर, अब कहानी पहुँचती है पार्क परिवार यानि की Park Dong-ik के घर पर जहाँ घुसते ही Kim-woo की आँखें चौंधिया जाती है, वह पूरे घर को उसके साज सज्जा और बनावट को अपनी आँखों में क़ैद करने की कोशिश करता है जहां उसकी पहली मुलाक़ात उस घर की हेल्प से होती है और वो उसे घर के एक हिस्से में बैठा के Yeon-kyo (Park Dong-ik की पत्नी) को बुलाती है और वो Kim-woo का इंटर्व्यू लेके उसे नौकरी पर रख लेती हैं पर अपनी नौकरी पक्की होते ही उसका दिमाग़ी प्लान अस्तित्व में आता है और अपने दिमाग़ को कम्प्यूटर से तेज दौड़ाता है और फिर वो इंग्लिश ट्यूशन के साथ साथ Yeon-kyo के छोटे बेटे के आर्ट टीचर के रूप में अपनी बहन Ki-jeong को और फ़िल्म में बाद के रोचक घटनाक्रम में कैसे ये दोनों भाई-बहन (Kim-woo और Ki-jeong) मिलकर उस घर में सालों से काम कर रही हेल्प और उनके ड्राइवर को हटवाकर अपने पिता Kim Ki-taek को ड्राइवर और माँ Kim Chung-sook को हेल्प का काम दिलवा देते हैं, और इस पूरे घटनाक्रम के बाद पूरा Kim परिवार Park परिवार के यहाँ काम कर रहा होता है पर Park परिवार को इस बात की ज़रा भी भनक नहीं कि ये सब एक ही परिवार के लोग हैं।

फ़िल्म में कई बार ऐसे मौक़े आते हैं जहाँ लगता है कि अब इनका भांडा फूटेगा पर ऐसा होता नहीं।

यहाँ पर तारीफ़ करनी होगी, सक्रीनप्ले और बोंग के निर्देशन की। जो फ़िल्म को इस क़दर बांधे रखती है कि आप हर पल इस सोच में होते हैं कि अब आगे क्या और इसी तरह से फ़िल्म में हर १५-२० मिनट के अंतराल पर कुछ ना कुछ सर्प्राइज़ होता रहता है, फिर वो हेल्प को घर से निकलवाने का प्लान हो या ड्राइवर को फँसाने का, सब बहुत ही साधारण सी घटना में होता है पर उसका ट्रीटमेंट अद्भुत है, जैसे कुछ मोमेंट्स पर स्लो मोशन और फ़िर सीन में लाइट की इंटेंसिटी, शॉट्स और उनके फ़्रेम, पूरे उद्देश्य को अंडरलाइन कर जाते हैं।

फ़िल्म में एक मौक़ा आता है जब पूरा पार्क परिवार घर पर नहीं है और तब पूरा किम परिवार उस बंगले में शान से रहता है, जिसमें बाथटब में नहाना, घर के गार्डन में सबका साथ मस्ती करना और साथ बैठकर बीयर पीना और मज़े करना मतलब वो सबकुछ जो वो साथ में करते थे अपने छोटे से बेसमेंट के घर में, यहाँ भी दोहराया जाता है और इस पूरे कोलाज में भी लाइट्स और फ़्रेम का ग़ज़ब इस्तेमाल है।

यहाँ तक फ़िल्म बहुत सीधे रास्ते जाते हुए मौज मस्ती के माहौल में है पर लेखक- निर्देशक अपनी बात अपने उद्देश्य से पीछे नहीं है वो यहाँ पर भी संवादों के ज़रिए एक बहस करता है- जैसे ये अमीर लोग कितने अच्छे होते हैं, तो Kim-woo  की माँ Kim Chung-sook कहती भी है कि अगर मेरे पास भी इतने पैसे आ जाएँ तो मैं भी अच्छी हो जाऊँ इन सबसे भी अच्छी। ये अच्छा होने में भी किम परिवार एक दर्द के साथ है कि वे इस सच से भी रूबरू होते हैं कि वे इस घर में ग़लत तरीक़े से घुसे हैं इसलिए वे उस हेल्प और ड्राइवर की चिंता करते भी दिखते हैं और ये सीन एक हँसी ख़ुशी के माहौल से उलट गम्भीर हो जाता है जब अचानक से दरवाज़े की घंटी बजती है और दरवाज़े पर पुरानी हेल्प खड़ी नज़र आती है जो तेज बारिश में अंदर आने की गुहार लगा रही है तभी पूरा किम परिवार छुपने लगता है और हेल्प अपने किसी पुराने सामान को लेने के बहाने से अंदर आती है फिर उसके बाद कहानी का एक बड़ा रहस्य खुलता है उस तीसरे परिवार का, और इस घर का भी।

इस हिस्से के बारे में कुछ भी बता के आपका मज़ा ख़राब नहीं करूँगा क्योंकि यहाँ से फ़िल्म जिस दरवाज़े और अंधेरी गलियों में घुसती है वो हमें अमीर ग़रीब के बीच के दायरे को और तीसरे परिवार की एक अलग व्यथा कहती है और बाद के हिस्से में कई मार्मिक द्रश्यों को दिखाती है और हमें फ़िल्म के साथ चल रही कई और व्यथाओं, व्यवस्थाओं पर सोचने को मजबूर करती है, इस पूरे हिस्से में ज़बरदस्त थ्रिल है, अवसाद भी और क्रूरता भी।

जैसे उदाहरण के लिए फ़िल्म में बारिश का सीन, अचानक से पार्क परिवार का घर लौटना, तीसरे परिवार का रहस्य, किम परिवार का वहाँ से निकलकर अपने घर पहुँचना जहां पर पूरा इलाक़ा, घर सब सीवेज के पानी से लबालब भरा है और घर की सबसे ऊँची जगह शौचालय के अंदर से मल तक बाहर आ जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ पार्क फ़ैमिली घर में बारिश का आनंद ले रही और उनका छोटा बेटा गार्डन में अपने टेंट में सोता है। ये दोनों द्रश्य अपने आप में एक पूरी कहानी हैं जो लोअर और अपर क्लास के बीच के भेद को गहरा करता है और साथ ही हमसे दोनों तस्वीरें सामने रखके सवाल भी करता है।

लेखक- निर्देशक इसके तुरंत बाद एक द्रश्य और गढ़ता है इस फ़ासले को और स्थापित करने के लिए, जब अगले दिन की धूप में कार में बैठे बैठे Yeon-kyo इस ख़ुशनुमा मौसम की तारीफ़ फ़ोन पर अपने किसी दोस्त से करती है तो वह कुछ कह नहीं पाता पर उसका हाव भाव और आँखें उसकी पूरी व्यथा कह जाती हैं।

एक और द्रश्य जिसमें किम का बेटा उनसे सवाल पूछता है कि अब तो घर भी नहीं बचा, आगे का क्या प्लान है तो Kim Ki-taek कहता है – “लाइफ़ में प्लान नहीं बनाने चाहिए” 

Kim Ki-taek की ये बात उस समय जितनी साधारण लगती हैं वो बाद में उतनी ही बड़ी हो जाती हैं, और फ़िल्म के अंत में वो स्टोन भी आता है जिसके आने के बाद से पूरे किम परिवार के ज़िंदगी में सुख के कुछ पल आए थे।

इसके अलावा और भी बहुत सी बातें हैं जो कही जा सकती हैं पर फिर वो फ़िल्म देखने जाने से पहले इसे पढ़ने वालों का फ़िल्म देखने का मज़ा किरकिरा कर देंगी।

पर फिर भी एक आख़िरी बात जो कहनी है कि यह उन दुर्लभ फिल्मों में से एक है, जिसे देखा जाना चाहिए। जिसमे मनोरंजन के साथ दुःख, अवसाद और कुछ परेशान करने वाले दृश्य भी हैं जो निश्चित रूप से आपके दिमाग पर एक प्रभाव डालेंगे। क्योंकि यह फ़िल्म एक बहुत ही शानदार ढंग से समाज में पूंजीवाद प्रणाली को उजागर करती है, जिसमें वर्ग भेद, लोगों द्वारा निर्धारित आर्थिक सीमाएँ और व्यक्ति वर्गीकरण का बेहतरीन उदाहरण है।

इस फ़िल्म की एक और बात जो मुझे पसंद आयी, वह थी इस संवेदनशील विषय को संभालने का सरल तरीका, यह विषय किसी भी देश पर लागू हो सकता है, हालांकि इसे कोरियाई संस्कृति और समाज को ध्यान में रखकर बनाया गया है; पर यह कहानी हम सभी को सोचने पर विवश करती है क्योंकि फ़िल्म के हर दृश्य को रूपक के रूप में उकेरा गया है और यदि आप सही से ध्यान दे रहे हैं तो आप हर चरित्र और उनके कार्य जो कुछ का प्रतिनिधित्व करते है का कनेक्शन खोज पाने में सफल होंगे।