हम सब का जीवन शिकायतों से भरा पड़ा है। हमने स्वयं अपने जीवन को शिकायतों का पिटारा बना रखा है। शिकायत स्वयं से, शिकायत दूसरों से, शिकायत ईश्वर से और तो और शिकायत इस पूरी प्रकृति से। यदि शिकायतें इस क़दर चारो ओर रहेंगी तो उत्सव या सुख कैसे होगा। शिकायतों के बीच सुख नहीं दुःख बसते हैं।
हम जब जब किसी भी शिकायत को व्यक्त करते हैं तब असल में हम अपने दुःख को अलग अलग शब्दों में दुनिया को दे रहे होते हैं। आपने कभी ग़ौर किया है कि एक निर्धन व्यक्ति शिकायत नहीं करता। वहीं दूसरी ओर एक ज्ञानवीर और समृद्ध व्यक्ति को समाज से, अपने पड़ोसी से अपने प्रतिद्वंदी से, यहाँ तक कि अपने सहयोगियों से भी शिकायतें ही शिकायतें होती हैं। वह कभी भी किसी भी परिस्थिति में प्रशंसा करने के अवसर पर भी एक ना एक शिकायत अवश्य कर ही देगा, क्योंकि उसने अपने मन और मस्तिष्क की प्रोग्रामिंग ही इस तरह से बना ली है कि वह प्रशंसा में भी शिकायत के गुण खोज ही लेता है।
मानव जीव हमेशा से ऐसा नहीं था। वह तो उत्सव प्रेमी हुआ करता था आज भी है लेकिन वर्तमान में बढ़ती प्रतिस्पर्धा और दूसरों से अग्रणी रहने की विवशता ने उसे इस तरह का बना दिया है। वह चाहकर भी दूसरे को श्रेष्ठ मानने जानने का अवसर बनने नहीं देता। वह हर अवसर में अपने ज्ञान और संसार को शामिल कर शिकायत की एक बड़ी स्मृति जीवित कर देता है। जिसके बाद वह स्वयंभू ही श्रेष्ठ बचता है बाक़ी सब व्यर्थ। इस पूरी प्रक्रिया से हमारा स्वयं सृजित यह जीवन शिकायतों में जकड़ा दुःख का एक पुतला बन जाता है, वह पुतला जो जलाने से भी ख़त्म नहीं होता बिलकुल उस रावण की तरह जिसे हम हर वर्ष दशहरा पर्व पर जलाते तो हैं पर इस तैयारी के साथ कि अगले वर्ष फिर से इसका दहन होगा।
हम ये जानना भी नहीं चाहते कि शिकायतें कितनी ग़ैर ज़रूरी हैं एक स्वस्थ जीवन के लिए। जीवन शिकायतों से नहीं क़ायदों से चलता है। यदि जीवन में नियम बन गए तो सब स्वतः ही स्वस्थ हो जाएगा, तब ना तो किसी शिकायत की वजह बचेगी और ना दुःख की। शिकायतों का जन्म ही अनियमितता और अनियम से आता है, इसलिए शिकायतों को ख़त्म करने की पहली सीढ़ी ही नियम है।
जिस दिन हम ये जान समझ लेते हैं कि हमारा जीवन ईश्वर का दिया एक अनोखा उपहार है, और उसकी रक्षा करना और उसे सहजता से जीना ही हमारी क्रिया है उस दिन से जीवन उस आशीर्वाद की तरह हो जाता है जहाँ शिकायतें नहीं बल्कि सिर्फ़ उत्सव होते हैं। इस बात को इस तरह भी कहा जा सकता है कि ईश्वर उनमें ही वास करता है जिन्हें शिकायतें नहीं बल्कि उत्सव में, मौन में, प्रशंसा में और सुख में रुचि होती है। जिन्हें दुःख के मार्ग में सुख के पुष्प नज़र आते हैं। जिन्हें व्यर्थ में भी अर्थ का भाव होता है। जिन्हें हर कमी में पूर्णता का भास होता है।
शिकायत हमारे लिए अतीत के भय से लेकर भविष्य के अंधकार तक का रास्ता होता है। इस अंधकार से बचने का एक मात्र पथ है स्वयं को बदलना, अपनी सोच को बदलना और जीवन को सानंद जीना। जीवन में कई घटनाएँ होंगी जिनका आप निवारण नहीं कर सकते, वे स्वतः होंगी। क्योंकि वे घटनाएँ आपकी नियति में थी पर उस घटना के बाद आपकी क्रिया आपके हाथ हैं, अब आप कैसे इस पर प्रतिक्रिया देंगे और उससे सृजित नियति आपकी स्वयं की बनाई होगी। अब यह आपका निर्णय होगा कि आप अपनी नियति शिकायतों के पिटारे से भरना चाहते हो या स्वयं को कर्म से निर्मित कर के। परेशानी कभी किसी सवाल का हल नहीं होती, वह एक परिस्थिति है जिसे हम नियति मान व्यथित होते हैं जबकि वह एक समय तक ही निश्चित है। परिवर्तन परिस्थिति का, परिवर्तन स्थिति से एक चक्र की तरह है, जैसे जन्म से मृत्यु।
जीवन में जो कुछ भी पीछे घटित हो चुका है उसे हम बदल नही सकते पर भविष्य में क्या बेहतर हो सकता है और हम अपने जीवन को कैसे खुशहाल बना सकते हैं ये हमें समझना जरूरी है। हमें ईश्वर ने जो कुछ भी दिया है हमें नित्य हर पल उसका आभारी होना चाहिए और उसके लिए सहर्ष उनका धन्यवाद कहते रहना चाहिए। हमें जीवन में उत्सव के पल ढूँढने का प्रयास करना चाहिए ना कि दुःख के। दुःख की पहली सीढ़ी ही शिकायत है और सुख की प्रशंसा।
जीवन में शिकायतें ख़त्म करोगे तो जीवन में उत्सव के द्वार खुलेंगे। बड़े से बड़े महापुरुषों के आचरण को ध्यान से देखो उनमें शिकायत नहीं हमेशा से प्रशंसा का भाव रहा, समानता का भाव रहा। वे सबको समान भाव से देखते थे, उन्होंने कभी भेद नहीं रखा। वे तो अपने द्वेष में भी प्रशंसा का भाव रखते थे। भगवान राम के जीवन में इस भाव का चित्रण कितनी सहजता से कितने ही प्रसंगो में आता है। भगवान कृष्ण के चेहरे के भाव कभी निराशा में उतरे ही नहीं, वे तो महाभारत के सघन युद्ध में भी सहज और कोमल बने रहे।
शिकायत का त्याग करना सीखो, जीवन में उत्सव का वास होगा, जीवन स्वस्थ होगा।
शिकायत दुःख है, इसे स्वयं से मत बढ़ाओ। इसे ख़त्म करने के नियम बनाओ। सुख में जियो, उत्सव में रहो, सानंद बिखेरो।